Rahim Ke Dohe

आज हम आपको बताने जा रहे हैं रहीम दास का जीवन परिचय| इतना ही नहीं| हम आपको ये भी बताएंगे कि रहीम दास ने ऐसे कौन कौन से दोहों की रचना की है जिनसे हिंदी साहित्य और साहित्य प्रेमियों के दिल में वो हमेशा के लिए अमर हो गए| आइए Rahim Ke Dohe को करीब से जानें|

रहीम दास की जीवनी

रहीम दास हिंदी साहित्य के महान कवियों में गिने जाते हैं| इनका जन्म 1556 ईस्वी में लाहौर में हुआ था| रहीम के पिता का नाम था बैरम खान| इतिहासकारों का मानना है की उन्होंने ही तरह वर्षीय अकबर की देखरेख की थी| वे अकबर के शिक्षक भी थे|

बैरम खान को खान ए खाना की उपाधि से सम्मानित भी किया गया था| रहीम दास की मां का नाम था सुल्ताना बेगम| वे मेवाती राजपूत जमाल खान की पुत्री थी| गुजरात के पाटण नगर में जब रहीम के पिता की हत्या कर दी गई थी तब इनका पालन पोषण अपने धर्म पुत्र के जैसे अकबर ने ही किया था|

उस समय रहीम की उम्र थी महज़ पांच वर्ष| रहीम को ‘मिर्जा खान’ के खिताब से भी नवाजा गया| रहीम की शिक्षा हुई बाबा जम्बूर की देख रेख में| अकबर ने अपनी धाय की बेटी माहबानो से उसकी शादी करवा दी|

जब रहीम ने कुछ युद्धों को जीत लिया तो अकबर ने खुश होकर उन्हें उस समय की सबसे महान उपाधि ‘मीरअर्ज़’ से सम्मानित किया था| अकबर ने इन्हें खान ए खाना की उपाधि भी दी थी| रहीम के संस्कृत भाषा के गुरु का नाम था बदाउनी|

1 October 1627 को अब्दुर्रहीम खानखाना यानी रहीम की मृत्यु हो गई| शायद बहुत कम लोग इस बात को जानते हैं कि अकबर ने रहीम को अपने नवरत्नों में शामिल किया था|

आज हम आपको बता रहे हैं हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक रहीम के बारे में|

Rahim Ke Dohe अर्थ के साथ

Doha 1

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं। 

गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं ||

दोहे 1 का अर्थ :

दोस्तों, इस दोहे में रहीम दास कहना चाह रहे हैं की अगर कोई व्यक्ति किसी बड़े व्यक्ति को छोटे नाम से भी पुकारे तो भी उस बड़े व्यक्ति का बड़प्पन कम नहीं होता है|

आप इसे ऐसे समझिए कि आप कृष्ण भगवान को काना कह दें तो भी वो रहेंगे भगवान का अवतार ही| इस दोहे से हमें ये शिक्षा मिलती है कि इंसान अपने नाम से नहीं बल्कि अपने कर्मों और गुणों से महान बनता है|

Doha 2

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। 

चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग ||

दोहे 2 का अर्थ :

इस दोहे के माध्यम से रहीम दास जी उन लोगों को सीख देना चाहते हैं जो अपनी असफलता का दोष अपनी गलत संगत को देने लगते हैं| इसमें रहीम दास जी कहते हैं की जो व्यक्ति उत्तम प्रकृति का होता है यानी की अच्छे स्वभाव और सद्गुणों वाला होता है उसपर बुरी संगत का तनिक भी असर नहीं पड़ता है|

रहीम इसे उदहारण के माध्यम से समझाते हैं की जिस प्रकार चन्दन के पेड़ पर ढेर सारे सांप लिपटे रहते हैं फिर भी सांपों की संगत में रहकर भी चन्दन खुशबू ही देता है विष नहीं, उसी प्रकार अगर हमारा इरादा मजबूत होगा तो हम बुरी संगत में रहते हुए भी उसमें लिप्त नहीं होंगे| फिर हमें सफल होने से कोई नहीं रोक सकेगा|

Doha 3

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।

टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय||

दोहे 3 का अर्थ

इस दोहे में रहीम दास जी ने मनुष्य को रिश्तों में प्रेम भाव हमेशा बनाए रखने की शिक्षा दी है| इस दोहे में रहीम ने प्रेम को एक धागे की संज्ञा देते हुए मनुष्य को समझाने की कोशिश की है की प्रेम तथा रिश्तों का बंधन एक धागे की तरह कच्चा होता है|

जिस प्रकार धागे को अगर हम एक बार तोड़ दें तो उसे दोबारा जोड़ा नहीं जा सकता| उसे अगर जोड़ने की कोशिश कर भी ली जाए तो उसमें गांठ पड़ जाती है जिसे कभी दोबारा से सामान्य नहीं किया जा सकता| 

ठीक उसी प्रकार अगर रिश्तों में भी गांठ पड़ जाए या यूं कहें की रिश्तों में दरार पड़ जाए तो फिर उस दरार को दोबारा भरना लगभग नामुमकिन है|

Doha 4

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय|

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय||

दोहे 4 का अर्थ

दोस्तों, इस दोहे में रहीम दास जी ने सभी मनुष्यों को एक गहरी सीख दी है| उन्होंने इस दोहे के माध्यम से कहा है की इस बात का हमेशा हमें ध्यान रखना चाहिए की जब भी हम किसी से व्यवहार करें तो सोच समझ कर करें| क्यूंकि आपके गलत व्यवहार से एक बार अगर बात बिगड़ गई तो उसे ठीक नहीं किया जा सकता| 

रहीम एक उदाहरण देते हैं की जैसे एक बार दूध पहात जाए तो उसे आप कितना भी मथ लें उससे मक्खन निकाल पाना नामुमकिन है| ऐसे ही अगर मनुष्य ने किसी से अपने बुरे व्यवहार के कारण बैर कर लिया तो फिर उस बिगड़ी हुई बात को बना पाना संभव ही नहीं है|

Doha 5

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि|

जहां काम आए सुई, कहा करे तलवार||

दोहा 5 का अर्थ

इस दोहे के जरिए रहीम दास जी हमें समझाना चाहते हैं की बड़ी वस्तु को देख कर छोटी वस्तु को फेंक नहीं देना चाहिए| दोनों का अपना अपना मूल्य है| रहीम दास जी आगे कहते हैं की जहां पर सुई से काम बन जाए वहां पर मनुष्य को तलवार का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए| इसी प्रकार हमें किसी भी इंसान को अपने से कम नहीं आंकना चाहिए|

निष्कर्ष (Conclusion)

दोस्तों, आज हमने आपको Rahim Ke Dohe के बारे में विस्तार से समझाया| हमारे इस article में आपको ये भी जानने को मिला की रहीम दास जी का असली नाम क्या था| इसके अलावा हमने आपको रहीम दास जी के माता पिता के बारे में भी बताया| अगर आपको हमारा ये आर्टिकल Rahim Ke Dohe पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर share करें| हम आपके लिए ऐसी ही तमाम रोचक जानकारियां प्रतिदिन लाते रहेंगे|

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