नमस्कार दोस्तों| आज हम आपको बताने वाले हैं Karwa Chauth Katha के बारे में| हो सकता है आप में से बहुत से लोग जानते हों कि Karwa Chauth Katha क्या है लेकिन जिन्हें नहीं पता उन्हें आज हमारा ये article पढ़ने के बाद आसानी से समझ आ जाएगा की Karva Chauth Katha क्या है? इसका महत्व क्या है? आज हम आपको ये भी बताने वाले हैं की करवा चौथ की पूजा कैसे की जाती है? हमारे साथ अंत तक बने रहें|
क्या होता है करवा चौथ?
हिन्दुओं के सबसे बड़े त्यौहार के रूप में करवा चौथ को गिना जाता है| भारत के पांच राज्यों जैसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और पंजाब में बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है| इस दिन सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती हैं| इस व्रत के दौरान सुहागिनें पानी की एक बूंद तक नहीं पीती हैं| शाम या रात में चांद को अर्घ देकर यानी जल अर्पण करके अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत तोड़ती हैं|
कब पड़ता है करवा चौथ?
कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को हर वर्ष करवा चौथ का त्यौहार मनाया जाता है|
क्या है Karwa Chauth Katha?
प्राचीन समय में एक पतिव्रता स्त्री थी जिसका नाम था करवा| कहते हैं, उनके पति बहुत ही ज्यादा उम्रदराज थे| जब करवा के पति नदी में नहाने गए तभी अचानक एक मगरमच्छ ने आकर उनका पैर पकड़ लिया| वो मगरमच्छ उसे निगलने के लिए खींचने लगा| तभी करवा के पति जोर से चिल्लाए और अपनी पत्नी को मदद के लिए पुकारने लगे| करवा माता अपने पति की सहायता के लिए आईं|
करवा माता ने अपनी साड़ी से सूती धागा निकाला और अपने तपोबल की मदद से उस मगरमच्छ को बांध दिया| जब सूत के धागे से बंधे मगरमच्छ को लेकर करवा माता यमराज के पास पहुंची तो यमराज ने कहा हे देवी आप यहां क्यों आई हैं, क्या चाहती हैं आप?
तब करवा माता ने कहा की ये वही मगरमच्छ है जिसने मेरे पति के पैर को पकड़ने का दुस्साहस किया था| मैं चाहती हूं की आप अपनी शक्ति से इस मगरमच्छ को मृत्यु दंड दे दें| साथ ही इसे नरक में भी भेज दें| यमराज ने उसकी आयु शेष बताकर जब ऐसा करने से मना कर दिया| तो करवा माता ने कहा की अगर आपने इसे मारकर मेरे पति को दीर्घायु होने का वरदान नहीं दिया तो मैं अपने तप के तेज से आपको ही पलक झपकते ही नष्ट कर सकती हूं|
इतना सुनते ही यमराज के बगल में खड़े चित्रगुप्त भयभीत हो उठे| क्यूंकी करवा माता के सतीत्व के कारण न तो उनको कोई श्राप दिया जा सकता था और न ही उनके वचन को अनदेखा करने की उनमें हिम्मत थी| इसपर उन्होंने उस मगर को यमलोक भेज दिया| साथ ही करवा माता के पति को चिरायु होने का वरदान भी दिया| चित्रगुप्त ने करवा माता को भी सुखी दाम्पत्य जीवन का आशीर्वाद दिया|
चित्रगुप्त ने ये भी कहा की जिस प्रकार आपने अपने पति के प्राणों की रक्षा की है| वैसे ही आज के दिन अगर कोई महिला करवा माता की पूजा पूरे विधि विधान और सच्चे मन से करेगी तो उसके पति के प्राणों की रक्षा चित्रगुप्त स्वयं करेंगे| उस दिन कार्तिक मास की चतुर्थी थी| इस प्रकार इस पर्व का नाम करवा माता के कारण करवा चौथ पड़ गया|
अभी आपको हमने बताया Karwa Chauth Katha के बारे में| आइए अब जानते हैं की आखिर चांद को ही इस दिन अर्घ्य क्यों दिया जाता है?
क्यों देते हैं चांद को अर्घ्य?
धार्मिक आधार पर देखें तो ऐसा माना जाता है की चन्द्रमा भगवान ब्रह्मा का रूप हैं| कुछ किंवदंतियों के अनुसार ये भी माना जाता है कि चांद को दीर्घायु का वरदान प्राप्त है| चांद की पूजा करने से दीर्घायु प्राप्त होती है| साथ ही चन्द्रमा सुंदरता और प्रेम का प्रतीक भी मन जाता है|
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक साहूकार की बेटी ने अपने पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था| लेकिन अत्यधिक भूख की वजह से उसकी हालत खराब होने लगी| जिसे देखर साहूकार के बेटों ने अपनी बहन से खाना खाने को कहा|
परन्तु साहूकार की बेटी ने खाना खाने से मना कर दिया| बहन की ऐसी हालत भाइयों से देखी नहीं गई| ऐसे में उन्हें एक युक्ति सूझी| भाइयों ने चांद के निकलने से पहले ही एक पेड़ पर चढ़कर छलनी के पीछे एक जलता हुआ दीपक रख कर बहन से कहा की चांद निकल आया है| बहन ने भाइयों की बात मान ली और दीपक को चांद समझकर अपना व्रत खोल लिया|
व्रत खोलने के बाद उनके पति की मृत्यु हो गई| ऐसा कहा जाने लगा की असली चांद को देखे बिना व्रत खोलने के कारण ही उसके पति की मृत्यु हुई थी| तब से अपने हाथ में छलनी लेकर बिना छल कपट के चांद निकलने के बाद पति को देखने की परंपरा शुरू हो गई|
क्यों खाई जाती है सरगी करवा चौथ के दिन?
दोस्तों, जिस प्रकार से करवा चौथ का एक विवाहित स्त्री के जीवन में बहुत महत्व होता है| ठीक उसी प्रकार सरगी का भी विवाहित कन्याओं के जीवन में बहुत महत्व है| जिन लोगों को सरगी के बारे में नहीं पता है उनको हम बता दें की सर्गी एक प्रकार से थाली होती है|
सरगी एक सास अपनी बहु को देती है| इस सरगी को प्रसाद समझ कर बहु ग्रहण करती है| अगर किसी कारण वश बहु अपनी सास से दूर रह रही है तो घर में जेठानी उसे सरगी खाने को दे सकती है| वो भी न हों तो घर की कोई भी बुजुर्ग महिला सरगी दे सकती हैं|
सरगी खाने का मकसद सिर्फ इतना होता है की महिलाएं इस दिन निर्जला उपवास करती हैं तो शरीर में कमजोरी आना लाज़मी है| इस कारण सरगी खाने को दी जाती है ताकि पूरा दिन body में energy बनी रहे|
कब खानी होती है सरगी?
सूर्य निकलने से पहले यानी सुबह चार से पांच बजे के बीच में सरगी खाने का प्रावधान है|
करवा क्या होता है?
दोस्तों, विवाहित महिलाओं के लिए कर्वे का बहुत अधिक महत्व होता है| ये मिट्टी का एक छोटा सा बर्तन होता है जिसमें जल भरकर चांद को अर्घ्य दिया जाता है| अगर करवा न हो तो कितना भी आपने विधि विधान से पूजा की हो सब व्यर्थ हो जाता है|
निष्कर्ष (Conclusion)
Friends, आज हमने आपको Karwa Chauth Katha के बारे में विस्तार से जानकारी अपने इस article के माध्यम से दे दी है| इसके साथ ही हमने आपको ये भी बता दिया है कि विवाहित महिलाओं के लिए करवा चौथ का बेहद ख़ास महत्व है|
सरगी क्या है और सरगी किसे और कब खाना चाहिए इसकी जानकारी भी आपको हमने दे दी है| करवा चौथ पर चांद को अर्घ्य देकर छलनी से क्यों देखा जाता है ये भी हमने आपको बता दिया है| अगर आपको हमारा ये article पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ जरूर share करें| जिससे उन्हें भी ये पता लग पाए की Karwa Chauth Katha क्या है? आपसे फिर होगी मुलाक़ात एक नई जानकारी के साथ|
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